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प्रशांत भूषण ने अरविन्द केजरीवाल को एक खुला पात्र लिखा था जोकि अंग्रेज़ी में था. कईयों ने मांग करी थी कि इसका हिंदी अनुवाद भी आपसे साझा किया जाए.आपकी मांग को पूरा करते हुए प्रशांत भूषण की चिट्ठी ( हिंदी में ) :
"प्रिय अरविंद,
28 मार्च को आयोजित राष्ट्रीय परिषद की सभा मे, आपने अपने संयोजकीय भाषण में पार्टी की स्थिति के आंकलन और उसकी भावी गतिविधियां क्या होगी, इस पर कुछ बोलने के बजाय, सीधा योगेन्द्र यादव, मेरे बिज़ुर्ग पिता और मुझ पर अनेक तरह के सरासर झूठे और भड़काऊ आरोप लगाते हुए आक्रमण किया! आपके इस तरह के उग्र भाषण ने दिल्ली के कई विधायकों को (जो राष्ट्रीय परिषद के सदस्य भी नहीं थे) हमारे खिलाफ़ चीख-चीख कर आहत करने वाले आपत्तिजनक शब्द -‘गद्दारो को बाहर फेको’ और नारे बोलने के लिए उत्तेजित किया ! परिषद की वो भीड़ उस समय इतनी खूँखार और उग्र थी कि जब वे सब मेरे पिता शांति भूषण जी की ओर लपके तो, उन्हें लगा कि आज वे यहाँ से ज़िंदा वापिस नहीं जायेगे !
आपने जो हम पर आरोप मढे, उनका उत्तर भी हमें देने का मौका आपने नहीं दिया ! आपके भाषण के तुरंत बाद विधायको की चीख–पुकार के बीच, मनीष जी ने बिना किसी अध्यक्षता के और उपस्थित लोगो की अनुमति लिए बिना, हमारे ‘हटाये’ जाने के प्रस्ताव को अविलम्ब जल्दी-जल्दी पढ़ डाला और उसके बाद बिना किसी चर्चा के उन्होंने लोगों से हाथ उठाकर पक्ष और विपक्ष में अपना मत देने के लिए कहा ! जिसका नतीजा ये हुआ कि इस असम्वैधानिक ढंग से हासिल किए गए परिणाम को जान कर, हमें वहाँ से उठ कर बाहर जाना पड़ा क्योंकि वहाँ एक अच्छा खासा तमाशा खडा हो गया था !
यह सारी हलचल साफ-साफ़ कई कारणों से, पहले से बना बनाया एक नाटक जैसी थी - क्योंकि राष्ट्रीय परिषद के अनेक सदस्यों को निमंत्रित ही नहीं किया गया था,बल्कि उन्हें बैठक में आने की अनुमति ही नहीं दी गई थी ! सभा-गृह में आधे से अधिक लोग ऐसे थे, जो राष्ट्रीय परिषद के सदस्य ही नहीं थे, जो उपस्थित थे उनमें - विधायक, चार प्रान्तों के जिला और राज्य संयोजक, स्वयमसेवक और फसादी तत्व थे ! इसके अलावा समूची कार्यवाही अनुशासन रहित थी, क्योंकि वहाँ मौजूद खौफनाक एवं शरारती तत्वों के अलावा, कार्यवाही का वीडियों बनाए जाने की मनाही थी, यहाँ तक के, पार्टी के ‘लोकपाल’ तक को उस सभा में प्रवेश की अनुमति नही थी !
अट्ठाईस तारीख़ के बाद जो घटा, वह नाटक उस स्तर तक पहुँच गया कि यह साफ़ नज़र आने लगा था कि पार्टी के अधिनायक (Dictator) द्वारा स्टालिन की ‘सफाया’ नीति को अपनाया जा रहा था ! पार्टी के लोकपाल को, जो भेद-भाव की नीति से मुक्त एक अतिमहत्वपूर्ण और ऊंचे कद का अधिकारी माना जाता है, उसे भी असम्वैधानिक तरीके से सिर्फ़ इस कारण से हटा दिया गया क्योंकि उसने राष्ट्रीय परिषद की सभा में आना चाहा था और जो सम्यक रूप से न्यायप्रियता का हिमायतीथा ! उसके अलावा बड़े ही असम्वैधानिक ढंग से राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी निलंबित कर दिए गए क्योंकि उन्होंने राष्ट्रीय परिषद की सभा में होने वाली गुंडागर्दी के बाद, हमारे द्वारा बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में भाग लिया था !
तदनंतर, आपने राष्ट्रीय परिषद की बैठक में दिए गए अपने भाषण की चतुरता से काट छांट करके उसका प्रसारण करवाया, जिसमे हमारे खिलाफ़ अनेक झूठे आरोप भरे हुए थे ! उस वीडियों मे से उस बैठक मे भीड़ के द्वारा की गई गुंडागर्दी के अंश भी आपने निकलवा दिए थे !अतेव इन सब हालात से आहत होकर मैं आपको यह खुला पत्र लिखने के लिए बाध्य हूँ !
मैं आपके द्वारा लगाये गए आरोपों का जवाब देकर सबके सामने अपनी स्थिति स्पष्ट करना चाहता हूँ और इसके लिए मुझे उन पिछली घटनाओं का उल्लेख करना होगा जहाँ से मेरा आपसे गम्भीर मत-वैभिन्य शुरू हुआ था ! अगर आपको याद हो, मेरा मत-वैभिन्य लोक-सभा चुनावो के बाद तब से शुरू हुआ, जब एक के बाद एक मनमुटाव की घटनाएं घटी, जिनसे आपके व्यक्तित्व और चरित्र की दो अहम खामियां सामने आई ! पहला कारण, राजनीतिक क्रियान्वयन समिति (पी.ए.सी.) और राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति का बहुमत आपके निर्णय के विरुद्ध होने पर भी, आप अपना निर्णय किसी भी कीमत पर पार्टी पे थोपना चाहते थे ! उसमे आपके वे निर्णय भी शामिल थे, जो नि:संदेह जनहित के और पार्टी के - दोनों के लिए बहुत नुकसानदायक सिद्ध होते ! इसके बाद, दूसरा बड़ा कारण ये था कि आप अपना मतलब साधने के लिए बहुत अधिक अनैतिक और किसी हद तक आपराधिक तरीके अपनाना चाहते थे !
लोक-सभा चुनावो के बाद आपको लगा कि पार्टी खत्म हो गई और अब तभी उठ खडी हो सकती है, जब हम फिर से दिल्ली में सरकार बनाने में कामयाब होए ! इसलिए चुनावो के तुरंत बाद आपने कांग्रेस पार्टी के समर्थन से दिल्ली में सरकार बनाने के लक्ष्य से कांग्रेस पार्टी से बातचीत शुरू कर दी ! जब यह बात बाहर निकली तो बहुत बड़ी संख्या में ‘आम आदमी पार्टी’ के महत्वपूर्ण सदस्य - पृथ्वी रेड्डी, मयंक गांधी और अंजलि दामानिया ने मुझसे बात की और कहा कि अरविन्द जी की कांग्रेस से समर्थन वाली सोच’ बहुत खतरनाक साबित होगी और यदि ऐसा हुआ तो वे पार्टी छोड़ देगें ! उस समय मैं शिमला में था ! मैंने आपसे फोन पर समझाते हुए बात करी कि इस मामले में आपको तब तक कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जब तक कि राजनीतिक क्रियान्वयन समिति (पी.ए.सी.) की बैठक मे इस पर गंभीरता से विचार न कर लिया जाए !
मैं शिमला से तुरंत वापिस आ गया और हमने आपके घर पर राजनीतिक क्रियान्वयन समिति (पी.ए.सी.) की बैठक की ! उस बैठक में अधिकतम सदस्य संख्या - 5:4 –ने यह कहा कि हमें कांगेस के समर्थन से सरकार नही बनानी चाहिए ! मैंने इस बात की ओर भी आपका विशेष ध्यान आकृष्ट किया कि ऐसा करने से हम ‘अवसरवादी’ लगेगे और वैसे भी जनता के सामने दिए गए अपने वक्तव्य को बदलने की तुक भी नहीं है ! मैंने यह भी कहा कि इस तरह की साझा सरकार अधिक समय तक चलने वाली नहीं, क्योंकि कांग्रेस जल्द ही आपना ‘हाथ’ खींच लेगी, तथा ऐसा होने पर हमें अपनी पार्टी को फिर से खड़ा करना और भी अधिक कठिन होगा !
इसके उपरांत, बहुमत के निर्णय पर अटल रहने के बजाए आपने कहा कि भले ही बहुमत का निर्णय आपकी सोच से अलग हो लेकिन अंतिम निर्णय लेने का अधिकार आपको ही है और आप कांग्रेस का समर्थन लेगें ! इस बिंदु पर मेरी आपसे अच्छी-खासी जुबानी बहस हुई थी ! मैंने स्पष्ट कहा कि पार्टी इस तरीके से नहीं चल सकती, प्रजातांत्रिक ढंग से चलानी होगी, और यह तय हुआ किराष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति, जिसमे सदस्य काफी संख्या में है, उसमे इस विषय को उठाया जाए ! परिणामस्वरूप, इस बारे में सदस्यों को ई-मेल द्वारा सूचित किया गया और सदस्यों को अगले दिन इस बारे में अपना मतदान करना था ! अगले दिन सदस्यों ने एक बार फिर बहुमत से इस निर्णय का विरोध किया ! इस पर आपके द्वारा दिल्ली के उपराज्यपाल को चुपचाप खत भेजा गया जिसमें सदन को अगले एक सप्ताह तक भंग न करने का निवेदन किया गया ! क्योंकि दिल्ली की सरकार बनाने के संदर्भ में ‘आप’ पार्टी जनता से राय-मशविरा करना चाहती है !
जैसे ही इस पत्र का खुलासा हुआ, कांग्रेस ने ‘आप’ को समर्थन देने से साफ़ मना कर दिया और आप अपना सा मुँह लिए रह गए ! फलत: आपको पीछे कदम हटाना पड़ा और आपको अपने सदस्यों से माफी भी माँगनी पड़ी ! इस सबके बावजूद भी कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने और कांग्रेस से अलग हुए विधायको का भी समर्थन लेने का काम जारी रहा जिसका खुलासा राजेश गर्ग के ‘स्टिंग टेप’ से हुआ कि आप किस तरह कांग्रेस के उन टूटे हुए विधायकों को साथ लेकर सरकार बनाना चाहते थे जिनके लिए आपने खुद इस तरह की बात कही थी कि भा.ज.पा. ने उन्हें ४ -४ करोड में खरीदा है ! आश्चर्य है कि आप कैसे इस तरह के लोगो के साथ सरकार बनाने की बात सोच भी सके? और यह सब सदन भंग होने तक नवंबर के अंत तक चलता रहा ! नवम्बर में आपने निखिल डे को बुलाया और कहा कि वे राहुल गांधी से कांग्रेस पार्टी द्वारा हमें समर्थन दिए जाने की बाबत बात करें ! लेकिन उन्होंने कहा कि वे इस सम्बन्ध में राहुल गांधी से कोई बात नहीं कर सकते! क्या आप इनमें से किसी भी तथ्य को नकार सकते हैं? ये सब यह दर्शाता है कि आप किसी भी कीमत पर अपनी पार्टी के लोकतांत्रिक नियमों को तोडते हुए, बहुमत के विरुद्ध जाकर और उन विधायको का, जिन्हें आपने खुद भ्रष्ट करार दिया था -अनैतिक रूप से समर्थन प्राप्त करके, ‘सत्ता’ हासिल करने के लिए कितने आतुर थे !!!
उसके बाद साम्प्रदायिकता भड़काने वाले पोस्टरों का मामला उठा ! आपके निर्देश के तहत दिलीप पांडे द्वारा दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाके में एक ऐसा पोस्टर लगाया गया, जिसमे कांग्रेस के मुस्लिम विधायक अपने धर्म के साथ विश्वासघात करते दिखाये गए और जिसके कारण दिलीप पांडे को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया ! उस वक्त पार्टी ने अमानतुल्लाह खान के द्वारा पुलिस को यह लिखते हुए पत्र भिजवाया कि वह पोस्टर उसके द्वारा बनवाया गया था, न कि पार्टी के द्वारा ! उस समय आपने ट्वीट किया था कि पुलिस दिलीप पांडे को गिरफ्तार क्यों कर रही है, जबकि पुलिस को अमानतुल्लाह खान को गिरफ्तार करना चाहिए ! इसके बाद एक सप्ताह के अंदर अमानतुल्लाह खान ओखला निर्वाचन क्षेत्र का प्रभारी बना दिया गया और उसे टिकिट देने का वायदा भी किया और अंत में उसे टिकिट दिया भी गया ! क्या ये सब तरीके अनैतिक नहीं हैं ?
इसके उपरांत ‘अवाम’ यानी ‘आम आदमी वौलेंटियर एक्शन मंच’ वाली ‘दुर्घटना सामने आई ! यह वो समूह था जिसका संगठन स्वयं सेवको की आवाज़ की सुनवाई के लिए हुआ था ! क्योंकि स्वयं सेवको में इस भावना के चलते कि उन्हें गुलामों की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, विद्रोह भडक जाने का अंदेशा आपको नज़र आने लगा था और आप इस उनकी इस सोच को कुचल देना चाहते थे ! सो आपने एक ‘खेल’ खेला ! आपने ‘अवाम’ संगठन के नाम एक छद्म एस.एम.एस भिजवाया कि ‘आप’ के स्वयं सेवक भा.ज.पा. से जुड जाए, जिससे यह लगे की ‘अवाम’ संगठन भा.ज.पा का एजेंट बन गया है ! जबकि वो एस.एम.एस पार्टी द्वारा ही गढ कर ‘फर्जी अवाम’ नाम से भेजा गया था ! इस छल-कपट नीति के तहत आपने गूगल हैन्गाउट पे घोषित किया ‘अवाम’ संगठन के लोग विश्वासघाती हो गए हैं जिसका प्रमाण वह एस.एम.एस है ! इसके चलते करन सिंह, जो ‘अवाम’ का नेता था उसे निलंबित करके पार्टी से निकाल दिया गया ! उसने ‘राष्ट्रीय अनुशासन समिति’ जिसका प्रभारी अधिकारी मैं था, वहाँ दरख्वास्त करते हुए बताया कि ‘वह एस.एम.एस. उसके द्वारा नहीं भेजा गया और इस मामले की अच्छी तरह जाँच की जाए! ‘ तब मैंने आपसे, दिलीप पांडे व अन्य कुछ लोगो से जाँच-पड़ताल की बात कही, लेकिन आपने दृढतापूर्वक मना कर दिया ! अंत में करन सिंह को पुलिस में एफ.आई.आर दर्ज़ करनी पड़ी, पुलिस ने मामले की बारीकी से छान-बीन की तो पाया कि पार्टी के ‘दिलीप चौधरी’ नाम के एक स्वयं-सेवक ने ‘फर्जी अवाम’ नाम से वह एस.एम.एस. भेजा था न कि वास्तविक ‘अवाम’ संगठन ने ! अरविंद जी आपको मालूम होना चाहिए कि किसी को बदनाम करने के लिए, इस तरह के छद्म नाम से हरकते करने वाला संगठन हो अथवा व्यक्ति - गंभीर दंडनीय अपराध का भागी होता है ! यह एक खेद का विषय कि दुर्भाग्य से युवा स्वयंसेवको को आपके मार्गदर्शन में इस तरह की छल-कपटपूर्ण बाते सिखाई जाती हैं कि इस तरह के गलत और फरेबी तरीके अपनाना राजनीति मे जायज़ है और इन्ही के बल पर राजनीति में पसरी ‘बड़ी बुराई’ को परास्त किया जा सकता है !
इसके बाद यह मुद्दा उठा कि महाराष्ट्र और हरियाणा में विधान-सभा चुनाव कराये जाने चाहिए कि नहीं ? इस पर फिर से राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति में इ-मेल द्वारा प्रस्ताव रखा गया और 15 -4 के अनुपात से यह बहुमत सामने आया कि पार्टी के ‘स्वराज’ के सिद्धांत के तहत चुनाव का मामला प्रांतीय ईकाइयो की इच्छा पे छोड़ दिया जाना चाहिए ! लेकिन आपने बहुमत के उस निर्णय को लागू नहीं होने दिया ! आखिरकार, ये सब करना व्यर्थ ही गया क्योंकि तब तक चुनाव एकदम पास आ गए थे, और अंतत: संगरूर में राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति की बैठक में यह निश्चित किया गया कि उन दो राज्यों मे चुनाव की कोई तुक नहीं और उन्हें चुनाव लडने की बात को भूल जाना चाहिए !
जब दिल्ली में चुनाव किए जाने की घोषणा हुई और उसके लिए चुनाव अभियान शुरू हुआ तो आपने स्वयं सेवको को निर्देश दिए कि ‘Modi for PM, Kejriwal for CM’का अभियान शुरू किया जाए ! मैंने तुरंत आपत्ति जताते हुए कहा कि यह सरासर असैद्धांतिक है ! इसका मतलब ये है कि हमारी पार्टी मोदी जी के आगे घुटनों के बल झुक गई है, जबकि पार्टी मोदी के खिलाफ ‘प्रमुख विपक्षी’ के रूप में डटकर खडी है !
इसके बाद जब दिल्ली में 2015 के विधान-सभा चुनावके लिए प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया आरम्भ हुई तो मैंने देखा कि उसमें कोई पारदर्शिता नाम की चीज़ नहीं थी ! वरन पूर्व नीति के ठीक विपरीत, हम वेबसाईट पर प्रत्याशियों के नाम पोस्ट नही कर रहे थे ! यहाँ तक पी.ऐ.सी. के पास प्रत्याशियों के नाम और बायोडाटा आदि जाँच-पड़ताल के बाद अनुमोदन हेतु नहीं भेजे जा रहे थे ! अत: पी.ऐ.सी. की दूसरी बैठक में मैंने इस मसले को उठाया क्योंकि मेरे पास दो प्रत्याशियों के विरुद्ध शिकायते आई थी जिनके नाम पिछली बैठक में प्रस्तावित किए गए थे ! यह सुनकर आप बहुत क्रोधित हो उठे और बोले - ‘आप सोचते है कि हम धूर्त और कुटिल लोगो का चयन कर रहे है?’ मैंने कहा बात ये नहीं है ! बात ये है कि हमें पारदर्शिता और छान-बीन करने की मेहनत से पीछे नहीं हटना चाहिए ! इस बात पर आपके और मेरे बीच अच्छी खासी बहस हुई और मैं उस बैठक से उठ कर चला गया व 27नवम्बर को मैंने एक इ-मेल लिख कर भेजा कि मैं प्रत्याशियों के संदेहास्पद और अपारदर्शी चयन प्रक्रिया की रबरस्टैम्प (मुहर) नहीं बन सकता ! वह इ-मेल आज जनता के बीच है !
इसके बाद नामों की दूसरी सूची में प्रत्याशियों के दस नामों में चार नाम संदिग्ध से लगने वाले लोगों के थे ! योगेन्द्र यादव ने और मैंने 10दिसम्बर को पी.ए.सी. को उन चार प्रत्याशियों से जुडी आपत्तियों के बारे मेंविस्तार से एक पत्र लिख के भेजाऔर यह भी लिखा कि इस बार चयन प्रक्रिया पिछली बार से बहुत अधिक भिन्न है !इस बार हमें लगता है कि राजनीतिक ठेकेदारों को टिकिट दिए जा रहे है, जो सिर्फ़ अवसरवादिता के लिए पार्टी में आए हैं, ये वे लोग हैं, जो अंतिम पलों मे कांग्रेस, भा.ज.पा और ब.स.पा. से अलग हो गए थे ! जिनकी हमारी पार्टी के प्रति न ही किसी तरह की वैचारिक प्रतिबद्धता है और न उनके पास जनता की सेवा का या जनहित में की गई किसी तरह की गतिविधियों का लेखा-जोखा है, न ही उन्होंने अपने आर्थिक स्रोतों का ब्यौरा प्रस्तुत किया है ! उनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिनके खिलाफ लोगों में पैसा और शराब बाटने, व हमारे स्वयम-सेवको को पीटने की शिकायते मौजूद है ! बहरहाल, यह बात उठाने पर उनमें से एक जिसे आपने वज़ीरपुर क्षेत्र से प्राथमिकता के साथ चुना था - वह उम्मीदवारी की घोषणा के ४ घंटे के अंदर ही वापिस भा.ज.पा. में चला गया ! इसी तरह महरौली सीट के लिए आपकी पहली पसंद, ‘गंदास’ को भी आखिरी पल मे छोडना पड़ा क्योंकि उसकी एक हाथ में शराब और दूसरे में रिवाल्वर के साथ तस्वीर संचरित की गई थी ! पर जब उसे छोड़ा, तो उसके भाई को टिकिट दे दिया गया ! अंत में उसका नाम भी ख़ारिज किया गया क्योंकि पार्टी के लोकपाल एडमिरल रामदास ने उसके विरुद्ध पक्की नकारात्मक जानकारी दी थी !
इसके उपरांत, जब हमने पत्र भेजा, तो ‘आप’ ने पी.ए.सी की बैठके बुलाना और पी.ए.सी द्वारा प्रत्याशियों के नाम अनुमोदन हेतु भेजने ही बंद कर दिए और अपनी ओर से नाम घोषित करने लगे ! जब ये सब हुआ तो, मैंने कहा - ‘बस बहुत हो लिया, अगर अब इस तरह की अवांछित गतिविधियां नहीं थमी, प्रत्याशियों की उचित विश्वसनीय जाँच-पडताल नही की गई तो, मैं स्तीफा दे दूँगा तथा जनता के सामने अपने इस्तीफे की वजह का खुलासा करूँगा !’ इस पर 4जनवरी को मेरे घर पर योगेन्द्र यादव, पृथ्वी राज रेड्डी आदि के द्वारा एक आपातकालीन बैठक रखी गई, जिसमे पार्टी के जिम्मेदारपदाधिकारी व पूरे देश के लगभग 16-17लोगों ने भागीदारी की ! सभी ने महसूस किया और कहा कि यदि इस वक्त आप स्तीफा देंगें, तो सारा अभियान बरबाद होकर, ध्वस्त हो जाएगा ! उस बैठक में मैंने कहा - ‘देखिये, जब इस तरह के समझौते किए जाते हैं, तो बहुत से नैतिक कोने स्वत: ही कट जाते हैं, मर जाते हैं और इस समय आप प्रत्याशियों का चयन पारदर्शिता और जाँच-पडताल के बिना कर रहे हैं!’ अगर आप इस तरह के प्रत्याशियों के साथ चुनाव में उतरते है और एकबारगी मानिये कि आप जीत भी जाते हैं, तो आगे आपको जिस तरह के समझौते करने पड़ेगें, वे ऐसे होंगें, जो आपकी पार्टी के ‘यू..एस.पी.’ को पूरी तरह विनष्ट कर देगें, जिससे ‘साफ़-सुथरी और पारदर्शी पार्टी का वैकल्पिक राजनीति से गठबंधन’ जैसी छवि सामने आएगी ! ऐसे गलत प्रत्याशियों को साथ लेकर चुनाव जीतने से बेहतर है, साफ छविवाले एवं इज्जतदार प्रत्याशियों के साथ चुनाव हार जाना ! मेरे इस सीधे कथन को तोड़-मरोड़ कर आपने मेरे खिलाफ़ यह प्रचार लिया कि मैं चाहता था कि ‘आप’ चुनाव हर जाए! क्योंकि मौकापरस्त प्रत्याशियों व गलत तरीको के साथ चुनाव जीतने पर कुछ ही समय में पार्टी के आधारभूत सिद्धांत विनष्ट हो जाते और आगे भविष्य में ये लोग पार्टी को पूरी तरह ध्वस्त कर देते ! अगर मैं ‘आप’ की हार चाहता तो, सबसे पहले उसी समय स्तीफा देकर जनता के बीच जाकर अपने स्तीफे का कारण बयान करता ! इसी तरह, अगर योगेन्द्र यादव सच में पार्टी की हार चाहते तो उन्होंने आप सबकी बैठक न बुलाई होती और मुझे जनता के बीच सब कुछ कहने से न रोका होता ! बल्कि उलटे उन्होंने तहेदिल से चुनाव-अभियान केलिए काम किया, अनगिनत मौको पर टीवी पे, पार्टी का बचाव किया ! इतना करने पर भी आपने मेरे साथ, उन पर भी पार्टी की हार की कामना करने का दोष मढने की गुस्ताखी की ! उस बैठक के अंत में इन सब बिंदुओं पे सोच-विचार और चर्चा के बाद आपके द्वारा बाकायदा अभिव्यक्त सहमति से तय हुआ कि: हम सब तुरंत चयनित प्रत्याशियों के विरुद्ध सभी शिकायतों को पार्टी ‘लोकपाल’ के पास भेज देंगे और उसका निर्णय अंतिम माना जायेगा तथा पार्टी में भर्ती संबंधी सुधार, पारदर्शिता, जवाबदेही, स्वराज, पार्टी की आतंरिक लोकतांत्रिकता - इन सब विषयों पर चुनावो के तुरंत बाद विचार किया जायेगा !
इस प्रकार, उन 12 प्रत्याशियों के नाम अविलम्ब ‘लोकपाल’ को भेज दिए गए ! जल्द से जल्द चार दिनों के अंदर छान-बीन की यह कवायद करनी थी ! लोकपाल ने दो लोगो के हटाये जाने की संस्तुति की जिनके विरुद्ध स्पष्ट प्रमाण मौजूद थे, जिन छह के खिलाफ कुछ कम प्रमाण थे, उन्हे चेतावनी दिए जाने की संस्तुति की और चार को पार्टी में बनाए रखने के लिए कहा ! जिन पर संदेह था, वे दो संदिग्ध प्रत्याशी हटा दिए गए ! लेकिन नए लोगों की पार्टी में भर्ती संबंधी सुधारों के मुद्दे - जिन पे चुनाव के बाद दो दिनों के बाद , चर्चा होनी थी, वह नहीं हुई ! इसके बजाय, 26 फरवरी की राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक, जिसमें आपने न आना तय किया, वह कुमार विश्वास द्वारा आपके इस्तीफे की घोषणा और आपकी मंडली के सदस्यों द्वारा, ‘बिना नियम के’ योगेन्द्र और मुझ पे प्रहार के साथ आरम्भ हुई ! आपकी ओर से उन्होंने जो संदेश दिया था, उससे स्पष्ट था कि संयोजक के रूप में आपके बने रहने की कीमत, पी.ऐ.सी और राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति से हमारे निष्कासन द्वारा चुकाई गई थी ! तब मैंने उस बैठक में सबके सामने, ऊपर कही गई बाते कही थीं और अफसोस की बात कि भर्ती संबंधी सुधारों के मुद्दों पे तब भी कोई चर्चा नहीं की गई ! उस दिन जिस बिंदु पे चर्चा की गई, वह ये था कि आप संयोजक पद पे रहे या न रहे ? हम सबने सहमति दी कि आप संयोजक के रूप में बने रहे ! लेकिन उसके बाद कुछ लोग आपसे मिलने आपके घर चले गए ! जिनके साथ आपने यह निश्चित किया कि हमें पार्टी से हटा दिया जाए और ऐसा ही 4 मार्च को आयोजित अगली बैठक में हुआ !
मेरे खिलाफ़ एक आरोप यह लगाया कि मैंने चुनाव अभियान में भागीदारी नहीं की ! मैं पहले ही बता चुका था कि जिस तरह से प्रत्याशी चुने गए थे, मैं उनके लिए चुनाव अभियान में साथ नहीं दे सकता ! मैं सिर्फ़ उनके लिए चुनाव प्रचार करने को तैयार था को जो अगर चुनाव जीते तो, वे पार्टी की स्वच्छ राजनीति की आदर्श अवधारणा और विचारधारा को आगे ले जायेगे तथा जनहित में काम करेगें ! मैंने उन पाँच लोगों की नाम-सूची भी दी जो मेरी नज़र में हर तरह से शिष्ट और योग्य थे ! लेकिन पार्टी ने मेरे पास जन-सभा को संबोधित करने के सम्बन्ध में कोई रूपरेखा ही नहीं भेजी ! इसलिए मैं पंकज पुष्कर जी के व्यक्तिगत बुलावे पर उनकी जनसभाओं मे गया ! गोपाल रॉय ये व्यर्थ का झूठ बोल रहे है कि मैं वायदा करके भी उनकी सभा में जाने से पीछे हट गया ! वस्तुत: जिस दिन उन्होंने मुझे बुलाया था, मैं कालीकट में था, जहाँ मैं पार्टी बैठक और संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहा था जिसमें मैंने दोहराया था कि दिल्ली के मुख्य मंत्री के लिए किरण बेदी का चयन सही और उचित नहीं था !
एक दूसरा आरोप मेरे खिलाफ यह लगाया गया कि मैंने लोगों को ‘आप पार्टी’ के लिए धन दान करने से रोका ! जब भी लोगो ने मुझसे पूछा कि उन्हें पार्टी के लिए धन दान करना चाहिए आदि तो, मैंने कहा – ‘आप उन लोगो के लिए दान करें, जो आपको ईमानदार और शिष्ट लगे !’ आपने और आपकी मंडली ने ऐसा ही आरोप मेरी बहन शालिनी गुप्ता के खिलाफ भी लगाया ! मेरी बहन ने भी अपने निकट के जानकार लोगों से वे ही बाते कही, जो मैंने कही थी ! सच्चाई ये है कि उसने बड़ी दृढ़ता से विदेश में बसे लोगों को, योग्य प्रत्याशियों के लिए आर्थिक सहायता देने के लिए प्रोत्साहित किया था इसलिए ही अनेक प्रत्याशियों को विदेश में बसे भारतीयों द्वारा बड़ी धन-राशि प्राप्त हुई थी !
आपने अपने भाषण में बहुत ही कलाकारी के साथ झूठे ब्यौरे पेश करते हुए कहा कि मैं किस तरह आपको जेल भेजने के लिए जिम्मेदार था ! जबकि सच्चाई ये है कि गडकरी –बदनामी के मुकदमे के तहत आपने खुलेरूप से जनता के बीच कहा था कि ‘बेल लेने से बेहतर जेल जाना’! जब मुकदमे की सुनवाई हुई तो जज साहिबा ने आपको अच्छी तरह से समझाया कि ‘व्यक्तिगत मुचलके’ का अर्थ क्या होता है ! आपने मुझसे सुनिश्चित किया कि जज साहिबा ने जो व्याख्या की है क्या वह सही है जिसका मैंने सकारात्मक हामी में जवाब दिया ! तब भी अपनी और साथ ही पार्टी की जन-छवि के लिए आपने ‘व्यक्तिगत मुचलका’ भरने के बजाय जेल जाना बेहतर समझा ! फिर भी मैंने और मेरे पिता ने कोर्ट में और जनता के बीच आपके निर्णय के पक्ष में पैरवी की और कहा कि इस वाकये से इस बात पर प्रकश पड़ता है कि इस तरह के मुकदमों में जनता से जुड़े मसले पर बेल या व्यक्तिगत बेल के लिए कहना, एक अनावश्यक मांग है ! हम दोनों आपसे जेल मे जाकर मिलने में अनेक घंटे बिताते थे, आपको विकल्पों के बारे में बताते थे, और आपको मुचलका भरने के लिए मनाते थे ! उसके बाद आप इसके लिए किसी तरह तैयार हुए !
आपकी मण्डली ने मेरे पिता और मेरी बहन और मुझ पर यह इलज़ाम भी लगाया कि हम पार्टी को हडपना चाहते थे ! अरविंद, आप ये अच्छी तरह जानते हैं कि हम में से किसी ने भी कभी भी अपने लिए या किसी मित्र या पारिवारिक सदस्य के लिए किसी तरह का कार्यकारी पद या टिकिट नहीं चाहा ! हमने सदा इस बात के लिए अपनी ओर से योगदान किया और हर सम्भव तरीके से मदद दी कि पार्टी देश में वैकल्पिक राजनीति की एक सशक्त और विश्वसनीय संवाहक के रूप में फले-फूले और आगे बढ़े ! मेरे पिता ने पार्टी के लिए दो करोड ‘बीज धन राशि’ के रूप में देने के अलावा न जाने कितना समय पार्टी हित में, निस्वार्थ, कानूनी व अन्य तरह के मशविरे देने में लगाया ! जनलोकपाल बिल का ड्राफ्ट तैयार करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई ! उन्होंने ने ‘तन,मन,धन’ से पार्टी के भले के लिए पूरे समर्पण से काम किया ! हाँ, जब उन्होंने अनेक कारणों की वजह से यह महसूस किया कि आप पार्टी का नेतृत्व करने के लिए सही व्यक्ति नहीं हैं, तो उन्होंने बेबाकी से आपको बता दिया ! ऊपर बताये गए, आपके अनैतिक समझौतों के अलावा उन्होंने महसूस किया कि आप पार्टी के सम्माननीय संविधान और नियमों को बारम्बार तोड़ रहे थे ! पार्टी के काम करने के ढांचे को रूपाकार नही दे रहे थे (सिवाय के अपनी मंडली के), इसी तरह पार्टी की नीतियों को भी बनाने में रूचि नही दिखा रहे थे !
दो वर्ष तक 34 नीति निर्धारण समितियों की विस्तृत रिपोर्ट जो हमने तैयार की थी - वह धूल की परतों के नीचे दबी पड़ी रही क्योंकि न तो आपके पास समय था और न आपकी रुचि थी कि आप उन रिपोर्टो पे एक नज़र डालते और उन पर अपना दिमाग लगाते ! आपने मेरे पिता को इस बात के लिए कोसा कि उन्होंने आपको किरण बेदी और अजय माकन के बाद मुख्य मंत्री पद के रूप में अंतिम तीसरी पसंद कहा ! ऐसा उन्होंने आपके व्यक्तित्व और चरित्र की लगातार सामने आने वाली कमियों के कारण कहा जिनका वे लम्बे समय से निरीक्षण कर रहे थे ! पर मैंने तुरंत जनता के बीच उनके कथन से अपनी असहमति जताई ! लेकिन बाद में जो सारी असलियत बाहर निकल कर आई, विशेषरूप से राष्ट्रीय परिषद की बैठक के मंच पर जो तानाशाही से भरा, अन्यायपूर्ण, अवहेलनापूर्ण और गैरजिम्मेदाराना रवैया आपने दिखाया, मुझे कहते हुए खेद है कि मेरे पिता सही थे!
मेरी बहन शालिनी व अन्य अनेक उच्च योग्यता वाले लोगों ने अपनी बड़ी-बड़ी शानदार नौकरियाँ सिर्फ़ इसलिए छोड़ दी कि वे एक विश्वसनीय और सशक्त व्यवस्था बनाने में आपकी मदद करना चाहते थे, जिसमे विभिन्न मुद्दों के सह-संगठन और प्रत्येक के विशेष ज्ञाता हों और भारत देश में एक विश्व स्तर की उत्तम व्यवस्था उभर कर आए ! अनेक बार आपने शालिनी को देश के लिए अपनी नौकरी छोड़ देने को कहा और यह स्पष्ट किया कि उसको सौंपा गया ‘संगठन विकास सलाहकार’ का कार्य सिर्फ़ सलाहकार की भूमिका है, न कि पार्टी के अंदर कोई औपचारिक पद है, जैसा कि उसकी नियुक्ति से पहले पी.ऐ.सी मे चर्चा की गई थी ! पर, यह बीतते समय के साथ स्पष्ट हो गया था कि आपको किसी भी विषय में विशेष सलाह चाहिए ही नहीं थी ! इसके बजाय अपने आशुतोष जिनके पास विशिष्ट योग्यता भी नहीं है, उनसे एक निदान स्वरूप योजना बनाने केलिए कहा, जिससे कि पार्टी का हरेक ‘सेल’ आपकी मण्डली के लिए मददगार उप-अंग हो जाए और आप किसी के प्रति जवाबदेह न रहें ! मेरी बहन ने रात-दिन आपकी पार्टी के लिए मेहनत से काम किया और विदेशों में बसे भारतीयों को उदारता से आपको आर्थिक सहायता देने के लिए सक्रिय किया और प्रोत्साहित किया, जो पार्टी की सफलता के लिए बड़ा योगदान सिद्ध हुआ ! आपकी पार्टी के कोष मे डाली गई आर्थिक सहायता का एक तिहाई हिस्सा विदेशों में बसे भारतीयों का योगदान है !
अरविन्द ये बात सही है कि पार्टी केलिए आपका जितना योगदान रहा, उतना मेरी ओर से नही रहा ! न तो मैंने अनशन किया और न मैं जेल गया ! मैं अधिकतर अपने महत्वपूर्ण मुकदमों और घोटालों 2G, कोलगेट, सी.बी.आई निदेशक, 4G, रिलाएंस गैस डकैती कांड, जी.एम फूड्स, न्यूक्लिअर पावर प्लांट, विध्वंसक हाइडल योजनाएं, धारा 66ए, तम्बाकू और गुटका, आदि में व्यस्त रहा ! लेकिन शेष समय में मैंने पार्टी हित में अपनी कानूनी सलाह व अन्य ज़रूरी सुझाव देने व कोर्ट संबंधी कार्रवाही करने में पूरा योगदान किया ! मैं पार्टी के अंदर कभी भी किसी पद को पाने के लिए इच्छुक नहीं रहा सिवाय के पार्टी के आधारभूत सिद्धांतों के प्रति अपनी ईमानदारी और प्रतिबद्धता को सुनिश्चित करने के लिए कटिबद्ध रहा ! और अपने इस स्वभाव व प्रतिबद्धता के कारण मैंने जब भी पार्टी को अपने रास्ते से भटकते देखा तो, हमेशा आवाज़ उठाई !
मैं उसी सच्चाई के साथ आपसे कहना चाहता हूँ कि आपको निर्णय लेने वाले समूहों खासतौर से पी.ए.सी और राष्ट्रीय परिषद में ऐसी स्वतंत्र विचारशील और विश्वसनीय आवाज़ वाले लोग चाहिए जो इतने दमदार हों कि जब आप गलत हों, तो वे खड़े होकर आपको बता सके और शुभचिंतक की तरह बेहिचक आपका मार्गदर्शन कर सके ! इस गुण और साहस के कारण मैं और मेरा परिवार आपको परेशानियां खड़ा करने वाला, अडंगे लगाने तथा पार्टी को खत्म करने वाला लगा, जबकि सच्चाई इसके विपरीत थी ! अरविंद आप यह जान ले कि आप ‘जी हुजूरी’ करने वालो को साथ लेकर बहुत दूर तक रास्ता तय नहीं कर सकते ! किन्तु यदि फिर भी आप ऐसा करने पे आमदा होंगे, तो पार्टी सिर्फ़ ध्वस्त ही नहीं होगी, बल्कि आप जिस तरह की सभ्यता-संस्कृति, पार्टी की ज़मीन में बो रहे है, उसके चलते, आप बहुत दूर तक भी शायद ही जा सकेगें !
अरविन्द, यह पार्टी हजारो लोगो द्वारा ‘आदर्शो’ की नींव पर खडी की गई थी ! खासतौर से युवा लोगो के द्वारा जिन्होंने देश में एक वैकल्पिक साफ़ सुथरी पार्टी का अनूठा रथ तैयार करने के लिए, राजनीति मे पारदर्शिता का अह्वान करने के लिए अपना बहुत अधिक समय, मेहनत, उर्जा,धन और खून-पसीना बहाया ! पर दुर्भाग्य से वे सारे आदर्श और सिद्धांत आपके और आपकी चाटुकार मंडली द्वारा छले गए ! वे सारे ‘जी हुजूरी’ करने वाले आपके शिकंजे मे हैं और परिणामस्वरूप आपकी पार्टी, तानाशाही और राजशाही सभ्यता की ओर उन्मुख पार्टी बनती जा रही है!
देहली का चुनाव ज़बरदस्त बहुमत से जीतने के बाद, आपको अपने सर्वोत्तम गुण बढ़ाने और सामने लाने चाहिए थे, लेकिन अफ़सोस के, आप के निकृष्टतम अवगुण एक-एक करके देश और विश्व के लोगो के सामने आ रहे हैं ! अब दुर्भाग्य से आपके सबसे सघन दुर्गुण सामने आए है ! जैसे लोकपाल का, हमारा व कुछ अन्य निर्दोष लोगो का पार्टी से निष्कासन ! स्टालिन के रूस और वर्तमान बदहाली मे जी रही आपकीअपनी पार्टी की समानता पे नज़र डालने के लिए, आपको जॉर्ज ऑरवेल के ‘एनीमल फार्म’ उपन्यास को पढ़ना चाहिए ! ईश्वर और इतिहास आपको उसके लिए कभी माफ़ नहीं करेगा, जो आप आज अपनी पार्टी के साथ कर रहे हैं !
क्या आपको विश्वास है कि आपके पास जो पाँच वर्ष हैं, उनमें आप देहली सरकार को चला कर, सब कुछ सुधार सकते हैं? यदि आप सोचते है कि आपने सुगठित प्रशासन प्रदान किया तो क्या लोग वो सब भूल जायेगे जो आपने पार्टी के लिए समर्पित और अनुभवी शुभ चिंतकों के साथ किया ? मैं दुआ करता हूँ कि आप अपने प्रयासों मे सफल होए ! ऎसी बात नहीं, यहाँ तक कि पीढियों से चले आ रहे, भा.ज.पा और कांग्रेस जैसे दलों ने भी सुगठित प्रशासन दिया है ! लेकिन जिस स्वप्न को साथ लेकर हम चले थे - स्वच्छ एवं आदर्श सिद्धान्तोवाली ‘राजनीति’ और भ्रष्टाचार मुक्त ‘प्रशासन’ वह कही अधिक ऊंचे कद का और आकाश जैसा विशाल था ! मुझे डर है कि अब हाल ही में आपने जिस तरह का व्यवहार और अपने चरित्र के लक्षण दिखाए हैं, उसकी वजह से ‘आम आदमी पार्टी’ जिस साफ-सुथरी आदर्शवादी राजनीति के खूबसूरत सपने पर नींव रखी गई थी, वह ‘दु:स्वप्न’ मे न बदल जाए ! फिर भी मै दुआ करता हूँ आप के साथ सब ठीक रहे !
अशेष शुभकामनाओं के साथ अलविदा !
प्रशांत भूषण "

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