सेना के दावे पर कमांडो सुरेंद्र सिंह का पक्ष
सेना का दावा कमांडो सुरेंद्र सिंह को दी जा चुकी हैं सभी सुविधाएं, सुरेंद्र सिंह ने इसे बताया सफेद झूठ
दिल्ली, 22 नवंबर. 26/11 ऑपरेशन
में दुश्मनों का बहादुरी से सामना करने वाले कमांडो नायक सुरेंद्र सिंह के
अपने हक की मांग के लिए मीडिया में जाने के बाद सेना और सरकार की ओर से एक
के बाद एक नए दावे किए जा रहे हैं. हर दावे में यह जिक्र है कि कमांडो
सुरेंद्र सिंह जो कुछ भी मांग कर रहे हैं वह नाजायज है. उन्हें उनका हक
दिया जा रहा है.
सेना
ने एक नोट जारी करके अपना पक्ष रखा है और कमांडो सुरेंद्र सिंह के सभी
आरोपों को खारिज कर दिया है. लेकिन सेना के दावे उसकी अपनी ही बातों का
खंडन करते हैं. सुरेंद्र सिंह ने बिंदुवार सेना के एक-एक दावे पर अपना पक्ष
रखा है.
1. पीआईबी के रक्षा विंग की ओर से जारी नोट में कहा गया है कि नायक सुरेंद्र सिंह की पेंशन और रिटायरमेंट के बाद दी जाने वाली ग्रेच्युटी मंजूर कर ली गई है. इस
नोट की भाषा पर गौर करें. सेना कह रही है कि उसने सुरेंद्र सिंह की पेंशन
और रिटायरमेंट ग्रेच्युटी की बात मंजूर कर ली है. यानी सेना सिर्फ मंजूरी
की बात कह रही है, वह यह नहीं कह रही कि सुरेंद्र को पैसे दिए गए हैं.
सुरेंद्र
सिंह ने आज प्रेस से बातचीत में भी यही कहा कि उन्हें अभी तक कोई पैसा
नहीं मिला. उन्हें सेना से अलग हए 13 महीने गुजर चुके हैं और वह अपने पैसे
के लिए लगातार चक्कर काट रहे हैं. यानी सुरेंद्र सिंह ने जो बात कही उसे
सेना झुठला नहीं रही बस शब्दों में हेर-फेर करके सुरेंद्र को गलत साबित
करने की कोशिश की जा रही है. अगर सेना के दावे को एक पल के लिए मान भी लिया
जाए तो क्या देश के सैनिकों को अपने हक की मांग के लिए प्रेस में जाना
होगा. जब तक वे प्रेस में नहीं जाएंगे उनकी बात सुनी नहीं जाएगी. एक सवाल
यह भी उठता है कि सेना ने अगर सचमुच ऐसा कोई निर्णय किया था तो इसकी सूचना
सुरेंद्र सिंह को पत्र लिखकर क्यों नहीं दी गई? सारे
सरकारी निर्णयों के लिए पत्राचार जरूरी होता है. लेकिन इस मामले में कोई
पत्राचार नहीं होना इस बात का इशारा करता है कि ये फैसले पहले हुए ही नहीं
हैं. अगर कोई बात प्रक्रिया शुरू हुई भी होगी तो वह आज के प्रेस कांफ्रेस
के बाद हुई होगी.
2. सेना
का दावा है कि सुरेंद्र सिंह को हर महीने 25,254 रुपए की पेंशन मंजूर की
गई है. सेना सिर्फ मंजूरी की बात कह रही है. वह यह दावा नहीं कर रही कि
उन्हें पैसे दिए जा रहे हैं. सुरेंद्र भी तो यही बात कह रहे हैं कि उन्हें
सेना से मुक्त हुए 13 महीने हो गए और कोई पेंशन नहीं मिल रही. ईलाज के लिए
उन्हें काफी खर्च करना पड़ रहा है और उसके कारण वह आर्थिक तंगी से गुजर रहे
हैं.
सुरेंद्र
सिंह को पेंशन की मंजूरी के सेना के दावे में एक विरोधाभास है. सेना का
दावा है कि सुरेंद्र सिंह को 25,254 रुपए प्रतिमाह की पेंशन दी जानी
मंजूर हुई है जिसमें सेवा पेंशन और युद्ध विकलांगता पेंशन दोनों सम्मिलित
हैं. सेना के ग्रेनेडियर्स रिकॉर्ड्स ने 6 जून 2012 में पत्र संख्या
2691391L/ Claim/D-Pen में
सुरेंद्र सिंह को लिखकर साफ-साफ बता दिया था कि उन्होंने 15 साल की सेवा
पूरी नहीं की है इसलिए वह पेंशन के हकदार ही नहीं है. तो सेना ने अचानक
कैसे सेवा पेंशन और युद्ध विकलांगता पेंशन की बात शुरू कर दी है. क्या वह
उनको रिटायरमेंट के बाद दिया जाने वाला पेंशन देने को तैयार है या फिर यह
युद्ध में घायल सिपाही को दिए जाने वाले पेंशन की बात कर रहे हैं. यह तो
सुरेंद्र सिंह का अधिकार है. अगर सेना के मन में अपने बहादुर सिपाही के
प्रति सच में कोई सदभावना है तो उन्हें रिटायरमेंट के बाद दिए जाने वाला
पेंशन क्यों नहीं दिया जा रहा. सेना के प्रावधानों के तहत ऐसा आसानी से
किया जा सकता है.
3. सेना का एक और दावा यह है कि उन्हें जिला सैनिक बोर्ड झज्जर द्वारा 05-10-2012 को भूतपूर्व सैनिक स्वास्थय कार्ड(ECHS CARD) को सुरेंद्र सिंह को हाथ में सुपुर्द किया गया. सेना का यह दावा गलत है. सुरेंद्र सिंह ने 08-10-2011 को Regional Director ECHS Delhi Canttके नाम एक डिमांड ड्राफ्ट (संख्या 819161, एसबीआई, बोहर शाखा, हरियाणा) तैयार कराया और नियमानुसार Regional Director ECHS Delhi Cantt को भेजा. ग्रेनेडियर्स रिकॉर्ड्स ने सुरेंद्र सिंह का ड्राफ्ट यह कहते हुए 02-05-2012 को लौटा दिया कि यह ड्राफ्ट ECHS Delhi Cantt के नाम नहीं बल्कि ECHS जबलपुर के नाम बनना चाहिए था. इस बात की सूचना पत्र संख्या 0954/SR/Y/ECHS के माध्यम से दी गई. इसके बाद ग्रेनेडियर्स रिकॉर्ड्स ने 03-09-2012 को एक अस्थाई ईसीएचएस कार्ड भेजा. इसकी सूचना पत्र संख्या 26913911/SR/ECHSके
द्वारा सुरेंद्र सिंह को दी गई. ध्यान देने योग्य बात है कि अगर सुरेंद्र
सिंह के डीडी में कोई तकनीकी त्रुटि रह गई थी तो उसकी सूचना देने में नौ
महीने का वक्त क्यों लगा. इस बीच ईलाज का खर्च जुटाने में सुरेंद्र सिंह को
तमाम कठिनाई झेलनी पड़ी.
4. रक्षा विंग की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि कमांडो सुरेंद्र सिंह ऑपरेशन ब्लैक टॉर्नेडो में घायल हुए और मेडिकल जांच के बाद इस निर्णय पर पहुंचा गया कि कमांडो सुरेंद्र सिंह बायें कान से बहरे हो चुके हैं. यह दावे दो बड़े सवाल खड़े करता है. पहला, कमांडो सुरेंद्र सिंह को सेवा से अलग करने के पीछे सेना ने जो कारण लिखित रूप में बताया था उसमें कहा गया है कि सुरेंद्र दोनों कानों से शत प्रतिशत बहरे हो चुके हैं इसलिए उन्हें सेवा में बनाए नहीं रखा जा सकता. तो सेना का कौन सा दावा सही है? सुरेंद्र को सेवा मुक्ति के दौरान किया गया दावा या आज की प्रेस कांफ्रेंस के बाद किया गया सेना का दावा?
5. सेना
ने अपने नोट में दावा किया है कि गैर-सरकारी संस्थानों से भी आर्थिक
सहायता आती है वह एनएसजी कल्याण कोष में जमा होती है. सेना का यह दावा कई
शंकाओं को जन्म देता है. सुरेंद्र सिंह ने मुख्य सूचना आयुक्त के आदेश के
बाद 06-11-2012 को जब एनएसजी मुख्यालय की फाइलों का मुआयना किया तो पाया कि
उनके नाम पर रोहन मोटर्स की ओर से दो लाख रुपए की एक रकम स्वीकार की गई
है. रोहन मोटर्स ने सुरेंद्र सिंह के नाम से जो चेक लिखा था वह कॉरपोरेशन
बैंक का था और उसका चेक नंबर 409796 है जो 09-01-2009 को जारी किया गया था.
ऐसे ही आठ और चेक अलग-अलग गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा जारी किए गए जिसकी
फोटोकॉपी फाइल में लगी थी औऱ भुगतान दिखाया गया था. इसके अलावा हरेक शहीद
के नाम से 10 लाख रुपए की रकम भी स्वीकार की गई है जिसकी फोटोकॉपियां
फाइलों में दर्ज हैं.
एक
सैनिक जो करगिल की लड़ाई लड़ चुका है, जिसने मुंबई के आतंकी हमले में अपनी
जान की बाजी लगा दी. जो ग्रेनेड से घायल होने के बावजूद लड़ता रहा और दो
आतंकियों को ढेर किया, उसके साथ सेना आमने-सामने खड़ी नजर आने लगी है. सेना
का तो फर्ज बनता था कि वह अपने बहादुर जवान को जो दुश्मनों से लड़ता हुआ
विकलांग हो गया था उसकी सेवाएं तत्काल खत्म करने की बजाय मानवीय आधार पर
उसे आठ महीने के लिए दूसरे ऑफिस जॉब में लगा सकती थी ताकि वह 15 साल की
सेवा अवधि पूरी करके सेवा पेंशन के हकदार बन सकें. लेकिन दुख की बात है कि
सेना ने अपने जवान के साथ हमदर्दी नहीं दिखाई.
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